उषा पान गरी छाती उषाभित्रै रमाउँछे !
प्रेम, आनन्द, श्रद्धा र समर्पण सुभावकी
उषा, प्रतीक हो ज्योतिर्मय सम्यक् प्रभावकी !
छे तमिश्राबिरोधी ऊ शुभ्रता सार्वभौम छे
सुष्मिता ! शान्तिका ओठ उषा निमग्न मौन छे !
उषा निस्पक्ष छे आभा छरिन्छे ऊ बराबर
उषा उन्मुक्त छे भाषा भावोत्तट मनोहर !
उषा अब्याख्य छे काब्य व्याख्या हुँदैन सत्यको
उषा केवल आनन्द ! अनुभूति अब्याख्य हो !
उषामाथि उषा थप्दै उषा पान गरी रहूँ
उषाबाट उषा झिक्दै उषा पान गरी रहूँ !
:नरेन्द्र पराशर
प्रेम, आनन्द, श्रद्धा र समर्पण सुभावकी
उषा, प्रतीक हो ज्योतिर्मय सम्यक् प्रभावकी !
छे तमिश्राबिरोधी ऊ शुभ्रता सार्वभौम छे
सुष्मिता ! शान्तिका ओठ उषा निमग्न मौन छे !
उषा निस्पक्ष छे आभा छरिन्छे ऊ बराबर
उषा उन्मुक्त छे भाषा भावोत्तट मनोहर !
उषा अब्याख्य छे काब्य व्याख्या हुँदैन सत्यको
उषा केवल आनन्द ! अनुभूति अब्याख्य हो !
उषामाथि उषा थप्दै उषा पान गरी रहूँ
उषाबाट उषा झिक्दै उषा पान गरी रहूँ !
:नरेन्द्र पराशर
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